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बच्चों को इंटरनेट जैसी ऑनलाइन गेम या विडियो के लत से कैसे छुटकारा दिलाएं?
हमने बच्चो के बारे मे उनके विचार के बारे में बहुत कुछ कहा भी और समझा भी हमें ध्यान इस बात का देना है,कि हमे बच्चों को कैसे सम्भालना है। उनको गलत आदतो से कैसे पिछा छुड़ाना है।वो चाहे गेम हो या विडियो या मोबाइल की लत क्यूं बच्चे अक्सर उन चीजों के प्रति ज्यादा आकर्षण होते है जो उनको मना किया जाता है। या रोकने की कोशिश कि जाती है।
अक्सर आप सभी ने अपने बच्चो को देखा होगा की थीं किसी न किसी चीजों के प्रति ज्यादा एडिक हो जाती है। चाहे टॉफी, बिस्कुट या बाने का कोई पदार्थ हो या बाहर घुमने के लिए या ऐसे कहे घर में रहकर इंटरनेट गेम, मोबाइल के प्रति ज्यादा आकर्षित हो जाते हैं। तो आप सभी को पता है कि लत लगना किसी भी वस्तु या चीजों की अच्छी बात नहीं होती है।
मैंने पहले भी कहा है बच्चे खाली बॉक्स की तरह होते है जैसा भरोगे वैसे होंगे ये आपकी जिम्मेदारी बनती है की उसमें अच्छा संस्कार डाले तो हम अच्छा क्यूँ ना डालें उनके अन्दर एक छोटे सर्वे के अनुसार पता चला है कि ज्यादा फोन या इंटरनेट विडियो गेम चलाने से उनका मतिष्क कमजोर होता जा रहा है। उनके मतिष्क का IQ lavel कम होता जा रहा है सोचने समझने की शक्ति भी कम होता जा रहा है।
क्या आप चाहेगें की आपके बच्चे ऐसे कम समझादार बने नहीं ना तो जाग जाइए और बच्चो रोकिए।हमे पता है बच्चों के ज़िद के आगे किसी भी माता पिता का वस नहीं चल पाता है यह आज का दौर चल रहा है,जिसके चलते माता-पिता अपनी भागदौड़ कि जीवन में आराम पाने के लिए बच्चों को फोन देकर अपना समय पर्सनल व्यतीत करने लगते और उनको यह नही पता है कि फोन एक ऐसा अंधरा कुआं है जिसमें बच्चो का भविष्य दांव पर लग रहा है।
आप सभी माता पिता से निवेदन है कि अपने बच्चो को ऐसी कुआं में ना डाले जिससे उनका भविष्य काल कोठी के जैसा कैद हो जाये।आप सभी पेरेंट्स को यह चाहिए कि अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपने लाइफस्टाइल को थोड़ा चेंज करके सतर्क हो जाएं जिससे बच्चों में चल रहे बुरे बर्ताव को ठीक किया जा सके इंटरनेट अच्छी चीज है पर तभी तक जब तक इसका उपयोग किया जाये दुरुपयोग नहीं दुरुपयोग हुआ तो सभी तरफ से हमारी जिन्दगी कैद हो जायेगी फोन के काल कोठरी में।एक ऐसा समय था जब हम फोन को लंबे तारों से जकड़े थे परंतु आज का दौर है जिसमें फोन में हम सभी युवा पीढ़ी को और आने वाले बच्चों को या जो बच्चे हैं उन सभी जनरेशन को फोन में अपने दायरे में समेट कर रख लिया जिससे बच्चों की जो स्थिति हो गई वह बहुत दयनीय हो गई है पहले 100 में से 2 बच्चे मेंटल डिसऑर्डर का शिकार होते थे।
अब तो लगभग 10 बच्चों में एक बच्चा मेंटल डिसऑर्डर होता जा रहा है क्या करें आज का जनरेशन 2G से 3G 3G से 4G 4G से 5G का हो गया इंटरनेट की स्पीड बढ़ रही है पर कभी किसी ने बच्चों के एजुकेशन बच्चों की रक्षा बच्चों की स्थिति को कोई भी ध्यान में नहीं रखा है चाहे उनके पेरेंट्स या हमारी गवर्नमेंट सरकार वह देश को उन्नति पर ले जा रही है पर अपनी युवा पीढ़ी को पतन की ओर
ढकेल रही है।
इन्हीं सब को देखते हुए बच्चों का जो दिमाग है जो आइक्यू लेवल है वह कम होता जा रहा है हमारा उद्देश्य बस यही है कि लोगों तक सही तरकीब पहुंचे इससे किसी व्यक्तित्व का उल्लंघन नहीं किया गया है आज के वैज्ञानिक दौर में बहुत ज्यादा विज्ञान आगे बढ़ता जा रहा है हर समय विज्ञान नई चीजों की ऊपर खोज कर रही है और नई वस्तु को हमारे समक्ष प्रस्तुत भी कर रही है जो हमारे दैनिक काम को बड़ी आसानी से आसान बनाता है परंतु उन आसानीयो से हम आराम ग्रस्त होते जा रहे हैं हमारी जिंदगी आलस से भरपूर हो चुकी है हमारी चेतना भी सुन्न हो गई है और किसी भी कार्य में हमारा मन नहीं लगता हम सभी अपने आप को असहाय बना लिए हैं और यही स्थिति अगर चलती रहे तो हमारी बच्चे भी इसका शिकार बड़े आसानी से हो जाएंगे जरूरी नहीं कि फोन नहीं सब कुछ है उनका लालन-पालन उनकी सुख सुविधाएं उन्हें बिगाड़ने में कई हद तक साथ निभा रही है।
यह देश आधुनिकता की ओर आगे बढ़ रहा है पर यह देश आधुनिकता नहीं बल्कि मशीनरी होता जा रहा है जो मनुष्य का आधा काम मशीनों के द्वारा हो रहा है उनका सोचने का प्रक्रिया भी मशीन के द्वारा संपन्न होता है ।मैं आपको एक छोटा उदाहरण प्रस्तुत 19 के दशक मे लोग अपने दिमाग वह शारीरिक का बहुत अच्छे से उपयोग करते थे परंतु अगर आज हमें किसी डाटा को प्रस्तुत करना है या उसे सही रूप में उपयोग करना है तो हम केलकुलेटर का यूज करते हैं अगर छोटी से छोटी भी प्रॉब्लम को सॉल्व करना है तो हमारे इस द फोन से लेकर केलकुलेटर उपस्थित है हम उसमें उस प्रॉब्लम का सलूशन ढूंढ के नोट करते हैं ना कि अपने दिमाग का प्रयोग करते हैं अगर बात की जात बड़े बच्चों की शिक्षक से पूछने में हिचकीचाते हैं।उनको गूगल से पूछना बहुत अच्छा लगता है अच्छी बात है कि हम आपसे निर्भर हो रहे हैं परंतु हम अपने दिमाग को दूसरी वस्तु के ऊपर निर्भर कर रहे हैं।
छोटे बच्चे जब भी फोन चलाने लगते हैं जब उनको आसपास होने वाली घटनाओं का कुछ भी पता नहीं होता उनके फोन का समय उनके वीडियो गेम खेलने का समय अगर आप कुछ भी चीजें पूछ रहे हैं तो वह आपको सही ढंग से जवाब नहीं दे खुद को फोन में इतना in-wall कर लेते हैं कि उन्हें लगता है वह और उनका फोन ही इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है।उनको इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है कि वह क्या खो रहे हैं वह स्वयं का नुकसान कर रहे हैं।एक सर्वे का रिपोर्ट में आपके सामने प्रस्तुत करूंगी एक बच्चा 1 वर्ष का था कोविड-19 में उसने पहली दफा फोन को हाथ लगाया 3 साल का लॉकडाउन उस बच्चे ने 3 साल में अपने आप को पूर्ण के हवाले कर दिया आज उसकी यह कंडीशन है कि वह सुनने में कमजोर है उसकी बात करने की क्षमता कमजोर है उसकी सहन शक्ति कमजोर है वह किसी के सामने जाने से हिचकीचाता है।
वह बाहरी व्यक्ति से मिलना नहीं चाहता आप समझ सकते हो वह बच्चा किस समस्या से ग्रसित पूरे 3 साल वह बिस्तर पर पड़ा पड़ा कंटीन्यू फोन को चलाया है इससे उसके बॉडी की ग्रोथ डबल हो गई है उसका मोटापा उसकी उम्र से ज्यादा है उसका वजन उसकी उम्र से कई गुना ज्यादा है वह सामान्य जिंदगी व्यतीत नहीं कर पा रहा है वह शुद्ध या साफ स्पष्ट रूप से बात नहीं कर पा रहा है और यहां तक उसने अपनी दृष्टि को भी खो चुका है आप सोच सकते हैं उस माता-पिता के ऊपर क्या बीत रहा होगा और बच्चा कितनी समस्याओं से जूझ रहा है यह एक रियल सर्वे है इसी का प्रभाव देखते हुए बच्चों को आप अपने सही परवरिश दीजिए हो सके तो उन्हें मशीनरी दुनिया से दूर रखें पैरंट से रिक्वेस्ट है कि अपने बच्चों के क्वेश्चंस को खुद ही सॉल्व करें गूगल या फोन पर उनके जवाब को ना ढूंढे और ना कहे कि बच्चे अपनी जवाब को फोन पर ढूंढे फोन की एक अलग दुनिया उसमें कोई भी गुम हो सकता है और ऐसा गुम होगा कि आपको पता भी नहीं चलेगा और उसकी जिंदगी उस में इस कदर रम जाएगी यह किसी को लगेगा भी नहीं किसके साथ क्या घटनाएं घटित हो रही है जब बच्चे फोन लेते हैं अपने हाथ में तब वह देश दुनिया से विरक्त हो जाते हैं उनके खाने-पीने का ध्यान बिल्कुल नहीं रहता उन्हें भूख प्यास दर्द कुछ नहीं होता इसके चलते वह अपने शरीर में न्यूट्रिशंस की कमी कर बैठते हैं इससे बच्चों के स्वभाव में बहुत चिड़चिड़ापन आ जाता है उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता उनका किसी कार्य में मन नहीं लगता वह 1 तरीके से लत में डूब चुके होते है।यह लत कुछ और नहीं बल्कि इंटरनेट या फोन है
कुछ तरीके जिससे बच्चों को संभालने में थोड़ा फायदा मिलेगा
1- हमें बच्चों के बारे में समझना चाहिए हमारा बच्चा ही क्यों ना हो हमें उसे समझने में गलती बिल्कुल नहीं करनी चाहिए उसे क्या चाहिए वह किस चीज पर बात कर रहा है उससे पेरेंट्स बनकर नहीं बल्कि उसके दोस्त बन कर समझिए।
2- बच्चे के फोन के लिए जिद कर रहे हैं तो उनका मनोज स्थिति देखकर उन्हें समझाएं उन को बहलाने फुसलाने का कार्य करें उनके फोन को उनसे दूर रखें।
3- ज्यादा से ज्यादा समय उनको बाहरी चीजों में व्यस्त रखें खिलौने में या पेंटिंग करने में या ऐसा वर्कशीट तैयार करें जिससे बच्चों का मन भटके नहीं बल्कि स्थिर रूप से वह अपने कार्य को पूरा करें।
4- अगर बच्चे बहुत जिद करते हैं तो बच्चों को फोन देने का एक लिमिटेशंस समय तैयार करें उनको ऐसे दायरे में बानी कि उस दायरे पर बीतने के बाद वह फोन आपको स्वयं लौटा है या खुद ही से उस फोन को दूरी कर दे।
5- हमेशा पेरेंट्स को चाहिए एक उनके मस्तिष्क को सेट करना सीखें उन्हें समय अवधि में बांधे और बच्चों को हमेशा नए तरीके से रिप्रेजेंट करने की कोशिश करें हमेशा अपने बच्चों के लिए नए नए अविष्कार करें
जिससे आपका बच्चा आपके बातों का महत्व दें।
6- हमें कुछ अपना और कुछ उनके मन को साथ लेकर चलना चाहिए जिससे उनके मन में मनोविकार उत्पन्न ना हो वह स्वयं को सबसे आगे बढ़ चढ़कर सोचे ऐसी परवरिश आपको करनी है एक मूल मंत्र हमेशा याद रखें।
7-अगर बच्चे सीखेंगे नहीं तो कभी समझेंगे नहीं अगर बच्चे गिरेंगे नहीं तो कभी समझ लेंगे नहीं अगर बच्चे कभी डरेंगे नहीं तो डर से बाहर निकलेंगे नहीं इसीलिए हर पेरेंट्स को प्रैक्टिकली रूप से अपने बच्चों का परवरिश करना चाहिए।