Table of Contents
वैदिक चिकित्सा का सामान्य अध्ययन (भाग 2)
- संहिता मंत्र
- ब्राह्मण ग्रंथ। गद्य में कर्मकांड
- आरण्यक। कर्मकांड के पीछे विवेचना
- उपनिषद। परमेश्वर परमात्मा ब्रह्म और आत्मा
वेद चार प्रकार के हैं:-
- ऋग्वेद
- सामवेद
- यजुर्वेद
- अथर्ववेद
वैदिक साहित्य का कार्यकाल 1200ई० पू० 600 ई ० पू ०माना जाता है |वेद के साथ-साथ वेदांग भी 6 है।
- शिक्षा
- छंद
- व्याकरण
- निरुक्त
- कल्प
- ज्योतिष
वैदिक साहित्य में धर्म के साथ-साथ चिकित्सा भी वरदान प्राप्त है बहुत समय से हमारे बीच वैदिक चिकित्सा का बोलबाला था परंतु कुछ बदमाशी के लापरवाह की वजह से हमारी सभ्यता हमसे दूर हो गई थी पर तो आज वर्तमान समय में हमारा देश पूरा प्रयासरत है कि हम वैदिक महत्व को समझें तथा उस पर विचार विमर्श करके इस पद्धति को अपनाया जाए वैदिक चिकित्सा से भारत की नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की अमूल वह प्राथमिक चिकित्सा है वैदिक शिक्षा विज्ञान विज्ञान का अमूल्य भंडार है चिकित्सा विज्ञान में का मेल बहुत ही ज्यादा अद्भुत अकल्पनीय भारतीय आयुर्विज्ञान या आयुर्वेदिक वैदिक साहित्य का अभिन्न अंग है और आधुनिक समय में इसकी विशेषता बढ़ती जा रही है महर्षि ने इसे अति पुरातन और शाश्वत कहां है |
“सुश्रुत के अनुसार”:-
ब्रह्मा ने सृष्टि के पूर्व ही इसकी रचना की सभी संहिता कारो ने ब्रह्मा को ही आयुर्वेद का प्रादुर्भाव माना है आज तक के समय में यही माना गया है कि भौतिक चिकित्सा ब्रह्मा जी द्वारा लिखा है|
ब्रह्मा जी के द्वारा प्राप्त आयुर्वेदिक वैदिक चिकित्सा पद्धति
कुछ ज्ञानियों ने आयुर्वेदिक को उपवेद माना है तथा ऋग्वेद में अधिकांश आयुर्वेद। अविच्छिन्न अंग माने जाते थे।
जबकि चरक , सुश्रुत , कश्यप आदि आयुर्वेदिक संहिताएं आयुर्वेदिक का संबंध अथर्व वेद से मानती है |
अधिकांश विद्वानों के अनुसार चिकित्सा शास्त्र का उपजीव्य मुख्यत: अथर्ववेद है।
गोपथ ब्राह्मण में इसे-
अश्विनी के समान अथर्वण अंगिरस युग्म भी चिकित्सा को दो प्रचलित पद्धतियों की ओर संकेत करता है।
आयुर्वेद शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है |
आयुष और वेद
चरक संहिता – जिस ग्रंथ में हित आयु (जीवन के अनुकूल ) अहित एवं दुख आयु (रोग अवस्था)इनका वर्णन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं |
मुख्य 8 भाग है।
1. शल्य तंत्र
2. शालाक्य तंत्र
3. काय चिकित्सा तंत्र
4. भूत विद्या तंत्र
5. कौमारभृत्य तंत्र
6. अगद तंत्र
7. रसायन तंत्र
8. वाजीकरण तंत्र
वैदिक साहित्य के मानव के संदर्भ में छोटी थी गणना-मानव शरीर में है |
- · जोड़ – 180
- · मर्म स्थल – 107
- · स्नायु तंत्र – 109
- · नाडियां – 707
- · हड्डियां – 360
- · (मैरो)।मज्जा – 5 00
- · सेल – 4.5 करोड़
- · हृदय वजन – 8 तोला
- · जिव्हा – 12 तोला
- · लीवर भार 1 – सेर
इन सबके बाद भी मानव का शरीर एक समान नहीं रहता क्योंकि सभी मानव विभिन्न प्रकार के साथ-साथ उसकी संरचना गणना आदि के अनुसार यह गणना परिवर्तन होती है |ईशा से सैकड़ों वर्ष पूर्व भारतीय चिकित्सकों ने संतान नियोजन का वैज्ञानिक उल्लेख कर दिए थे “उनके मतानुसार मासिक स्राव के प्रथम 12 दिनों में गर्भ नहीं ठहरता। “
अब हमें यह ज्ञात हो जाना चाहिए कि हमारा वैदिक चिकित्सा पद्धति आज के आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से ज्यादा ज्ञानी था परंतु कभी भी हम अपने संस्कारों धार्मिक संस्कृति को महत्व प्रदान नहीं कर सके इसी वजह से हमारा देश गुलाम था। तथा दूसरों के बनाए हुए अविष्कार पर अपना जीवन यापन कर रहा था अगर हम आज भी वेद व उसके अधिकार को पालन करें तो हमें वह हमारे देश को नहीं पहचान मिल सकती है तथा जो खो चुका है उसे हम पुनः जीवित कर मानव कल्याण कर सकते हैं तथा अपने जीवन को सिक्योर तथा सुरक्षित कर सकते हैं और कभी भी हमें किसी भी देश या विदेशी से वस्तु लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और हमारे पास जो पारंपरिक रूप से ज्ञान भंडार भरा हुआ है उसकी पहचान कर हम नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं तथा नए कार्य को भी प्रदान कर सकते हैं कहां गया है ना की धरती वीरों से खाली नहीं है उसी प्रकार हमारे देश में ज्ञान-विज्ञान धार्मिक भौतिक का अद्भुत संगम प्राप्त होता है बस हमें कुछ मेहनत और खोजों की जरूरत है जिससे हम अपने देश में उपलब्ध सभी वस्तु से एक नई ज्ञान का स्रोत उत्पन्न कर सकते हैं |
आयुर्वेद के कुछ अन्य विभाग:-
- वृक्षायुर्वेद
- पश्वायुर्वेद
- गजायुर्वेद
- अश्वाआयुर्वेद
- गवाआयुर्वेद
अब हमें पता चलता है कि हमारा वैदिक पद्धति कितनी कारगर वह ताकतवर है आज के समय में हो रहे नई टेक्नोलॉजी को भी मात दे सकती है इसलिए हमें हमारे वैदिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देना अति आवश्यक हो गया है |
नई जनरेशन को इसके बारे में अत्यधिक जानकारी देना हमारा फर्ज बनता है कि हम नई जनरेशन को किस प्रकार मोटिवेट कर अपने ही संस्कारों को ऊपर उठाने में मेहनत कर सके इस प्रकार उन्हें शिक्षा और आज का समय जो है वर्तमान समय में शिक्षा को छुपाना नहीं बल्कि शिक्षा का नवीनीकरण कर लोगों तक पहुंचाना है क्योंकि ज्ञान एक ऐसी सीढ़ी है कि अगर एक भी सीढ़ी छुटी तो हम कभी भी अपने मंजिल की छत पर नहीं पहुंच सकते उसी प्रकार ज्ञान का भी भंडार है अगर ज्ञान का एक भी लकीर छोटा तो हम ज्ञान के भंडार के पास कभी भी नहीं पहुंच सकते इसी वजह से हमें तो को जानकर समझकर और उसे सरल और सुगम बनाकर लोगों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य बनता है |