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वैदिक चिकित्सा का सामान्य अध्ययन (भाग 1)

वैदिक चिकित्सा का सामान्य अध्ययन

वैदिक चिकित्सा व स्वदेशी चिकित्सा पद्धति पर विचार करना हमारे लिए आज बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि आज के वर्तमान समय में दवा की जरूरत बढ़ती जा रही है और 55% लोग दवा पर निर्भर है। वह अपनी तबीयत और अपने जीवन को जीने के लिए उन में दर्द व कष्टों को दूर करने के लिए एलोपैथिक दवा का बहुत ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं जो रिजल्ट तुरंत तो प्रदान करता है पर उसका असर लास्ट में भयावह हो जाता है।मानव जीवन पूरी तरह से दवा पर निर्भर होता जा रहा है जिसके चलते मानव सभ्यता विभिन्न विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त होते दिखाई दे रहे हैं और वह सारे समस्या हमारे आज के वर्तमान समय में उपयोग करने वाले रंग बिरंगी गोलियों उन्हीं की वजह से हमारा जीवन नर्क बन गया है कि महंगी बहुत ज्यादा केमिकल युक्त दवा हमारे शरीर के लिए अनुपयुक्त हो रहा है इस केमिकल की दुनिया में शरीर को स्वस्थ व तंदुरुस्त रखना बहुत कठिनाई का काम है क्योंकि हमारा पूरा लाइफ स्टाइल इन एलोपैथिक दवाइयों से गिर चुका है|जिसकी वजह से हम सात्विक भोजन सात्विक चीजों के ऊपर हमारी नजर नहीं जा पा रही हम प्राकृतिक से दूर हैं और प्रकृति हमसे दूर है जिसके चलते हम विभिन्न विभिन्न कष्टों का सामना कर रहे हैं|क्योंकि आधुनिक समय में उपयुक्त दवा शरीर को स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाता रहा है जिसके चलते हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त इसी जीवन को सुव्यवस्थित वह सुसंगठित बनाने के लिए हमें वैदिक व स्वदेशी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति अपनाना चाहिए क्योंकि वह हमारे जीवन में वैदिक चिकित्सा के महत्व को जानना जरूरी है |


यस्य देशस्य तो जन्तु स्तजजं तस्यौषधं स्मृतम्

अर्थात-

जो व्यक्ति जिस देश में जन्म लेता है उस देश में उत्पन्न होने वाली स्वदेशी औषधि उसके लिए प्राकृतिक एवं हितकारी है क्योंकि हम जिस वातावरण में जन्म लेते हैं या जिस स्थान पर जन्म लेते हैं वह मातृभूमि हमारी रक्षा करती है तब हम उसकी रक्षा करते हैं,क्योंकि हमारी भूमि ही मातृ के नाम से जानी जाती है इसीलिए हमारी माता कभी हमारी अभलाई नहीं सोचेंगी वह हमेशा हमारी भलाई भी सोचेंगे |

इसीलिए हम अपने वातावरण में सुव्यवस्थित ढंग से जीना ही अच्छा होता है|जो कि हर देश में उसकी मौसम व मानसून विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा हमें अपने जीवन को भी उनके अनुकूल बनाना पड़ता है इसलिए जिस देश में हम रहते हैं हमें उसी देश के अनुसार स्वदेशी औषधि अपनाना चाहिए अगर हम जीवन में स्वदेशी वस्तु को नहीं अपनाते तो हमारा जीवन अंग्रेजी दबाव तथा केमिकल युक्त टेबलेट हमारे जीवन जीने की पद्धति को नुकसान कर देता है साथी साथ हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाता है और हम दिन प्रतिदिन लंबी उम्र के बजाय एक अंधेरे कुआं की और अपने स्वास्थ्य के प्रति गिरते चले जाते हैं |

इसलिए हमें अपनी जीवन शैली को स्वस्थ एवं संस्कृत रखने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अपनाना चाहिए परंतु आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का गुण गौरव खो सा गया है।क्योंकि पश्चिमी देशों से आया हुआ दवा देखने में रंग-बिरंगे व केमिकल युक्त होती हैं वह हमारे शरीर में तुरंत खुल कर काम तो कर देती हैं परंतु वह हमारे शरीर को दिमाग के साथ ही खोखला करता जा रहा है और उसी तरह तरह हमारे जीवन जीने को भी प्रभावित कर रहा है अधिकता के दौर में अंग्रेजी दवाओं का बोलबाला है क्योंकि वह सस्ती व किफायती था जल्दी आराम देता है परंतु हम मानव को यह नहीं समझ आता कि जो जल्दी आराम करता है वह हमें सर के दर्शन करा कर नर्क की ओर ले जाता है परंतु यह बातें हमें तब तक समझ नहीं आती जब तक हम इसे भुक्तभोगी नहीं हो जाते परंतु इसकी कमी हमारे भारतीय सभ्यता में है क्योंकि भारतीय सभ्यता के वैध, ऋषि, आचार्य |

वह कभी अपनी ज्ञान का प्रदर्शन नहीं किए कभी भी अपने ज्ञान को शिक्षा के भांति बांटे नहीं।

इसीलिए यह आयुर्वेदिक के होम्योपैथिक दवा जो चमत्कारी हैं जो संजीवनी बूटी की तरह हमारे लिए वह जीवन में कार्य करती है परंतु हम इसका गुण इसकी अच्छाई हम तुच्क्ष प्राणी जान नहीं पाए। कि हमारे देश में उगने वाले स्वदेशी औषधि कितने कारगर वह चमत्कारी हैं परंतु अफसोस हमारे वैद्य की दोष व गलतियों की वजह से हमें अपने अनमोल वह सर्वगुण संपन्न औषधि से भी नहीं है हम अपने ही देश में अपने लिए चमत्कारी औषधि को नहीं जानते हैं।

क्योंकि कभी भी इस शिक्षा का महत्व बतलाया ही नहीं गया हम ना चाहते हुए भी पश्चिमी देशों से आए हुए रंग बिरंगी गोलियां के पीछे अपने जीवन को गोल-गोल घुमाते रहे और इसी वजह से हम अंग्रेजी दवा के आदी होते चले गए |परंतु आदमी समय के ज्ञाता वह महान ज्ञानी जो वेद व वैदिक चिकित्सा के बारे में। जानने की इच्छा उत्सुकता दिखा रहे हैं जिसके द्वारा अब हम आयुर्वेदिक के महत्ता को जान पाएंगे क्योंकि आयुर्वेदिक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो हमें अगर असर ना किया तो नुकसान भी नहीं करेगा वह हमारे लिए किफायती ना हुआ तो हमें परेशानी में भी नहीं डालेगा|भारतीय सभ्यता में आयुर्वेदिक का सबसे बड़ा प्रमाण मिलता है |

रामायण में जब लक्ष्मण को बाण लगा था, और हनुमान जी संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की है तथा समस्त सेना का ओबी संजीवनी बूटी कि सेवा प्रदान की गई थी|

लक्ष्मण द्वारा शुपर्नखा के नाक काटने और उनका उपचार किया गया था| तो सोचिए कि उस समय भी शल्य चिकित्सा था त्रेता युग मे भी शल्य चिकित्सा का प्रमाण मिलता है |तब यह सोचने वाली बात है|

हमारी प्राचीन सभ्यता कितनी शक्तिशाली तथा आधुनिकता के तत्पर्य थी या यूं कह सकते हैं कि आधुनिकता से भी कहीं अधिक शक्तिशाली युग था क्योंकि आधुनिकता भी वही कर रही है जो वेद वेदांग ब्राह्मण आरण्यक और हमारे संस्कृति सभ्यता तथा परंपरागत रूप से जो चिकित्सीय या प्राकृतिक चिकित्सा होती थी वही आज आज आधुनिक चिकित्सा में भी उपलब्ध कराया जा रहा है |बस अंतर यह कह लीजिए कि कुछ टेक्नोलॉजी की वजह से और कुछ नई आधुनिकीकरण मशीनों के द्वाराचीजों को जानना आसान हो गया है तथा हम समय रहते व्यक्ति की स्थिति और परिस्थिति को मध्य नजर रखते हुए उनकी सहायता कर सकते हैं |

परंतु के दवा की बात की जाए या चिकित्सा की बात की जाए तो यह मत सभी का है कि प्राकृतिक चिकित्सा वह वैदिक चिकित्सा हमारे शरीर व स्वास्थ्य के लिए कारगर था |

तो ऐसी कई वैदिक आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रमाण हमारे ग्रंथ वेद व संस्कृति में मिलता है हमारा संपूर्ण विश्व चमत्कारी वह गुणकारी औषधि ओं से भरा पड़ा है बस फर्क इतना है कि हमें जानकारी वह ज्ञान की बहुत ज्यादा कमी है तथा लगाओ को बढ़ाने की आवश्यकता है तभी जाकर हम इस अद्भुत चमत्कारी लाभ को पा सकते हैं |

ऐसे कई ऋषि मुनि है जो आधुनिकता के दौर में भी वैदिक चिकित्सा प्राकृतिक औषधि के गुणो की खोज कर रहे हैं और सफलता भी हासिल कर रहे हैं ,पर आप लोगों को बताने की जरूरत आन पड़ी है की अंग्रेजी दवा मनुष्य को तो तुरंत लाभ जरूर देता है और लोगों को भी ठीक करता है परंतु वह यह नहीं जानते किअब तो ठीक हो जाएगा वह अपने जटिल से जटिल रोगों की इलाज तो कर लेंगे परंतु क्या उनको पता है कि वह स्वयं को ठीक कर पाएंगे वह स्वयं की स्वास्थ्य की तथा अपने जीवन जीने की कला को सही कर पाएंगे क्या आधुनिक दौर में जी रहे लोग रंग बिरंगी गोलियों के बवंडर से बाहर निकल पाएंगे क्या वह अपनी जीवन जीने की शैली को बदल पाएंगे क्या व स्वस्थ जीवन जी पाएंगे ऐसे कई प्रश्न हमारे सवाल में उठते हैं ऐसे कई प्रश्न हमारे जहन में बार बार हजार बार उठते हैं कि क्या हम एक बार आजाद फिरते हो पाएंगे |

आजादी तो सब अंग्रेज हुए थे अपने देश को गुलाम होने से छुटकारा दिलवाए थे परंतु क्या किसी को पता है अंग्रेजी दवा पश्चिमी सभ्यता से आई हुई रंग बिरंगी गोलियों की जंजीर से जो जकड़न हमें हुई है हम उससे बाहर आ पाएंगे क्या हम एलोपैथिक दवा के जंजीरों से बाहर निकल पाएंगे ऐसे कई प्रश्न है जिसका उत्तर हमें मिलना बहुत जरूरी है और जरूरी क्यों ना हो,क्योंकि हमारी जरूरत एक अच्छा स्वास्थ्य एक अच्छा जीवन शैली जीना है |

तबभी कहते हैं ना हमारे देश में स्वदेशी चीजों के महत्व को जानना जरूरी है ऐसे कई वैदिक आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रमाण हमारे ग्रंथ वेद अरण्यक ब्राह्मण संहिता तथा वेद के अंग और कई संस्कृति व सभ्यता तथा छोटे-मोटे ग्रंथ कार में भी हमारे वैदिक आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रमाण प्राप्त होता है हमारा संपूर्ण विश्व चमत्कारी वह गुणकारी औषधियों से भरा पड़ा है जिसको जानना बहुत जरूरी है अन्यथा हम अपनी सभ्यता व संस्कृति की धरोहर को होते चले जाएंगे |

बस फर्क इतना है कि कभी-कभी हम चीजें हमारे आसपास होते हैं और हम समझ नहीं पाते यह में निश्चित रूप से ज्ञान न होने पर हम वस्तु या पेड़ पौधों के विषय में जानकारी हासिल नहीं कर पाते हमारी जानकारी की कमी व ज्ञान की कमी की वजह से आज हमारा देश जिसका मूल विषय ही प्राकृतिक चिकित्सा रहा है हम उससे अभिन्न है हम उसमें अज्ञानी है क्योंकि हमें कभी इन ही विषयों पर चर्चा करने का मौका नहीं प्राप्त हुआ और जब लगाओ बढ़ा या जानने की उत्सुकता हुई तो हमें ज्ञान बांटने तथा शिक्षा प्रदान करने के लिए कोई भी व्यक्ति नहीं बचा इसके प्रति हमें अपनी जानकारी वह ज्ञान की कमी तथा लगाओ को बढ़ाने की आवश्यकता है हमें स्वयं को जागरूक बनाना है तथा घर-घर में प्राकृतिक चिकित्सा औषधि को बतलाना है तभी जाकर हम इस अद्भुत वह चमत्कारी लाभ को प्राप्त कर सकते हैं नहीं तो पश्चिमी सभ्यता से आए हुए रंग बिरंगी गोली हमें गोल गोल घुमा कर एक ऐसे जंजीरों में जकड़ लेगी जिसमें जाना तो सरल होगा परंतु निकल के आ ना उतना ही मुश्किल है पर आप लोगों को बताने की जरूरत आन पड़ी है कि अंग्रेजी दवा मनुष्य को तुरंत लाभ जरूर देता है तुरंत स्वस्थ जरूर करता है क्या परंतु आपको पता है उसके बाद हमारे शरीर की क्या कंडीशन होती है क्या दशा प्राप्त होती है हमारा शरीर किस स्थिति से होकर गुजरता है हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हम दवा तो खाते हैं और ठीक भी हो जाते हैं पर हमारा शरीर कितना कमजोर हो जाता है हम इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हमारी शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के चलते कई अन्य बीमारियों का भी घर बन जाता है |

ऐसा नहीं है की अंग्रेजी दवा एकदम ही खराब है परंतु इतना हद तक जितना हमारा शरीर इन दवाओं की शक्त पन को बर्दाश्त करता सके या तब हम करें जिस जो असाध्य रोग हैं जिसका इलाज शायद हमारे जड़ी बूटी में है तो पर हमें नहीं पता है हम उसका इलाज अंग्रेजी दवा से कर सकते हैं पर हम छोटी-मोटी बीमारियों के लिए घरेलू उपाय प्राकृतिक चिकित्सा राज्य चिकित्सा एवं औषधि का इस्तेमाल कर सकते हैं |

कहना ज्यादा गलत नहीं होगा कि अंग्रेजी दवा एक दीमक के समान है जो लकड़ी को धीरे धीरे अंदर से घुसकर खोखला कर देती है और एक दिन वह हट्टा कट्टा लकड़ी धराशाई हो जाता है जमीन पर और मिट्टी में मिल जाता है ,उसी प्रकार हमारा शरीर भी है|

अंग्रेजी दवा बिल्कुल दिमाग की भांति हमारे शरीर में जाकर वह इम्यूनिटी सिस्टम को हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को अंदर से खोखला कर दी जाती है जिसका दुष्परिणाम यह प्राप्त होता है कि हम एक बीमारी को ठीक नहीं करके उभरे हमें दूसरी बीमारियों का घर बन गए और हम अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत ना हो तो हम एकदम लकड़ी की भाति जमीन में गिर कर धराशाई हो जाएंगे और 1 दिन मिट्टी और पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे |

इसीलिए कहा गया है ना की अंग्रेजी दवा मनुष्य को तो तुरंत लाभ जरूर देता है और रोग को भी ठीक करता है परंतु वह यह नहीं जानते हैं कि रोक तो ठीक हो जाएगा पर स्वयं को कैसे ठीक रख पाएंगे स्वयं के जीवन को कैसे जी पाएंगे स्वयं के स्वास्थ्य को कैसे स्वस्थ रख पाएंगे फिर यह होगा कि लोग फिर से प्रकट हो सकता है पर अब शरीर साथ नहीं देगा रोग से लड़ने के लिए क्योंकि रोग प्रतिरोध क्षमता हमारी खत्म हो चुकी रहेगी इसलिए कभी भी स्वास्थ्य व जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर हम जीवन व स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करें तो जिंदगी हमारी खिलौना बना देती है जिसको ना तो खेल सकते हैं और ना ही फेंक सकते हैं |

इसीलिए कभी भी हमें जीवन से नहीं खेलना चाहिए वास्तव में अगर हम देखे तो हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सा का पतन हमारे वैध, ऋषियों ,व आचार्य द्वारा हुआ है |

जो होम्योपैथिक के चुनौतियों का सामना न कर सके और ना ही अपने जड़ी बूटी के ज्ञान तथा प्राकृतिक ज्ञान को लोगों में बांट सके कहा जाता है ज्ञान बांटने से कभी कम नहीं होता हमेशा बढ़ता ही है परंतु हमारे आचार्य वह ऋषि यों ने नहीं समझा इसलिए हमारी सभ्यता में मावा रसोई का स्थान सर्वोच्च है क्योंकि जिस देश को ही मां का स्थान दिया जाए उस देश में मां का स्थान तो सर्वोच्च होगा ही देखेंगे होम्योपैथिक दवा के उदाहरण हरड़ ,बहेड़ा ,आंवला,काली मिर्च,लौंग,इलायची, अजवाइन, हींग, काला नमक, सेंधा नमक, एलोवेरा, गिलोय, तुलसी, आदि ऐसे कई सामग्री उपलब्ध है जिससे हम औषधि के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं ,जो घरेलू उपचार ही है |

प्रस्तुत पुस्तक की रचना इसी आधार पर वह इसी उद्देश्य की गई है कि जो विषय जानकारी में हो जिस विषय का ज्ञान ना हो उसे सही ढंग से उकेरा जा सके और आशा करती हूं कि यह पुस्तक जनसाधारण की भी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति का आधार पड़ेगा और लोगों को वैदिक चिकित्सा के बारे में सही जानकारी प्रदान करेगा तथा लोगों को इसके प्रति जागरूक करेगा और अंग्रेजी दवा के नुकसान को समझाएगा और हमारे जीवन जीने की कला को सिखाएगा तथा स्वास्थ्य ठीक भी रखेगा वरना एलोपैथिक दवा की रंग बिरंगी गोली अबे आकर्षित कर के अंदर से कमजोर व खोखला बना देगा |