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बच्चों को कौन-कौन सी समस्या होती है?
बच्चों की समस्या यह है कि वह आज के दौर में होने वाले तकनीकी जुड़ाव से ज्यादा लगाव लगाते हैं ।आप सभी को पता है कि टेक्नोलॉजी (technology प्रौद्योगिकी)और तकनीकी(Information सूचना) या यूं कह लें कि उनका सबसे मनपसंद प्रिय वस्तु स्मार्टफोन छोड़ना ही नहीं चाहते, वह सोचते हैं कि फोन उनकी दुनिया है पर ऐसा बिल्कुल नहीं है ,फोन उनकी दुनिया नहीं है, बल्कि फोन उनके लिए एक अभिशाप है ,क्योंकि फोन के चलते बच्चे अपने बचपन को जीना भूल गए हैं। क्या होता है ? बचपन उन्हें नहीं पता आप कभी बुजुर्ग के साथ बैठे तो उनसे बात करिए तो पता चलता है कि उन बुजुर्ग के समय उनका बचपन कैसा हुआ करता था।
गीली मिट्टी से सना उनका पूरा शरीर पानी में छप छप करता उनका पैर गर्मी के मौसम में पेड़ पर चढ़कर आम का तोड़ना भरी दुपहरी मे पकड़म पकड़ाई खेलना इसे कहते थे बचपन कच्ची कैरी खाना गिल्ली डंडा खेलना इसे कहते थे।
आजकल के बच्चों में ऐसा बचपन देखने को कहा मिलता है नहीं वह अपना दोपहर का समय वह अपना रात अपना शाम अपना सुबह सब कुछ समर्पित कर देते एक स्मार्टफोन के पीछे उन्हें ज्यादा कुछ तो समझ में नहीं आता पर उन्हें वीडियो ऑनलाइन गेम्स एप्स के बारे में बहुत सारी नॉलेज होती हैं ,पर जो पता होना चाहिए बचपन मे नहीं पता है । यह समस्या सबको तो लगता है आम है पर आप सभी को पता है बचपन का मतलब सब कुछ खो जाना छोटी पन की वह संपत्ति होने जैसा होता है । जो एक बड़े अपनी पूरी जिंदगी की कमाई होते हैं ,तो बच्चे उसी तरह अपना बचपन खो देते हैं यह समस्या सबके लिए समान होगा आम होगा पर पूछिए उन बड़ों से जो इस बचपन को नहीं जी पाते अक्सर पूछा जाता है ,आप अपने बचपन में किया क्या आपने अपना बचपन जिया है?ऐसे तमाम प्रश्न आपसे पूछे जाते हैं और आप सबके पास इसका जवाब नहीं होता है ।
ऐसी कई चीजें हैं जिससे इन समस्याओं की शुरुआत होने लगती है और यह समस्याएं सामान्यतः सभी बच्चों में पाई जाती हैं की फोन का आदि हो जाना फोन के बिना कुछ नहीं करना फोन ही उनकी दुनिया है ।इस समस्या से बच्चे लगभग लगभग समान रूप से होते हैं अगर हम बाद में बच्चों की सामाजिक रूप से कमजोरी की तो जाहिर सी बात है अगर वह लोग से नहीं मिलेंगे या लोग उनसे नहीं मिलेगे या वह बड़ों से बातें नहीं करेंगे हमारी दुनिया को देखिए नहीं तो उनका मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर तो होंगे क्योंकि वह समाज से जुड़ना नहीं पसंद करते हैं तो बाहर जाना नहीं पसंद करते हैं ।वह लोगों से मिलना नहीं चाहते खुद को सीमित कर लिए हैं ।फोन उनका कंफर्ट जोन है ,कंफर्ट जोन से अगर बाहर निकाल लेंगे तो गुस्सा चिड़चिड़ापन आपको देखने को मिलता है, और हमेशा देखते भी हैं इसी वजह से बच्चे किसी से मिलना पसंद नहीं करते हैं ,लोगों के साथ घुलना मिलना नहीं चाहते ।वह अपनी दुनिया में रहना पसंद करते हैं ,उनकी दुनिया बस फोन कुछ एप्स कुछ वीडियो गेम्स कुछ वीडियो ऐसे उटपटांग चीजें बच्चों को बेहद पसंद आती है ,पर हमें उनकी पसंद नहीं देखना है ।हमें उनका कंफर्ट जोन नहीं देखना है हमें उनका भविष्य देखना है।
हमें उनका बचपन देखना है ,और उस बचपन के साथ-साथ उन को आगे बढ़ाने का रास्ता ढूंढना है, पर यह समस्या सभी को समझ में नहीं आती है ,क्योंकि अक्सर माता-पिता अपनी privacy(गोपनीयता) के लिए माता-पिता बच्चों को फोन दे देते हैं और यहीं से समस्या शुरू होती है।
अक्सर लोग हमसे पूछते बच्चों का बचपन कैसा होना चाहिए ? जब कभी हम लोगों से बात करते हैं, उनकी बीच में जाते हैं तो उनकी बातें सुनकर हमारे मन में कई तरह के सवाल होते हैं। जब वह कहते बच्चों का बचपन कैसा होना चाहिए आज का जो बचपन बच्चे जी रहे हैं ना वह बचपन उसे नहीं कहते हैं उसे लड़कपन भी नहीं कहते हैं। कभी बुजुर्गों के बीच में बैठते हैं तो कहते हमारे समय का बचपन बहुत मजेदार होता था ,क्या मैं आपसे पूछना चाहती हूं जो आज की जनरेशन के बच्चे हैं ऐसा क्वेश्चन अपने आने वाले भविष्य में किसी बच्चे से पूछ सकते हैं या कह सकते हैं बता सकते हैं उनके बचपन में क्या था नहीं बस इतना ही कहेंगे हमारे बचपन में हमारा फोन था।
कुछ माता-पिता ऐसे होते हैं जो बच्चों को फोन नहीं देना चाहते हैं, पर परिस्थिति ऐसा बन जाता है कि बिना फोन लिए काम ही नहीं बनता कुछ माता-पिता अपने कंफर्ट जोन के लिए फोन दे देते हैं ।कुछ माता-पिता को कुछ समझ नहीं आता तब फोन दे देते हैं। सोचने वाली बात है ना कैसे-कैसे परिस्थिति बन जाती है ,ना चाहते हुए माता-पिता फोन नहीं देना चाहते हैं ,पर बच्चों की जीद बच्चों का रोना बच्चों की आडियल पन को देखते हुए फोन देना पड़ जाता है और जो इसके विरोधी होते हैं माता-पिता वह बच्ची के इस समस्या से जूझते रहते हैं और इन सभी बातों से समस्याओं से वह दूर जाना चाहते हैं उन्हीं सब माता-पिता के लिए हमने कुछ ऐसे बिंदु तैयार किए हैं जो माता पिता के लिए सहायता प्रदान होगा।
- मैं उन माता-पिता से कहूंगी कि पहले बच्चों को सामाजिक तौर से मजबूती प्रदान करें आप सब यह बात जानते हैं कि बच्चों को पहले सामाजिक ता से जोड़ना चाहिए क्योंकि सामाजिकता ही एक ऐसी पहली सीढ़ी है जो बच्चों को हर एक बुरी आदतों से छोड़ सकती है या जोड़ सकती है तो हमें पहले फोकस रखना है कि हमारे बच्चे किन समाज में जा रहे हैं वहां का माहौल कैसा है अच्छा है या बुरा है तो यह काम हमारा है जज करने का हम जज करके उन्हें एक अच्छे समाज में भेजेंगे जैसे उनका निर्माण उनका व्यक्तित्व का निर्माण बहुत अच्छा हो मेरा मानना है ,यह पर्सनल एक्सपीरियंस है कि अगर बच्चों को समाज में रहने वाले लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाया जाए तो बच्चों की यह जो बुरी लत कह लीजिए या बुरी आदत कह लीजिए उनसे वह जल्द ही जल्द बहुत जल्द अच्छा परिणाम निकल कर सामने आएगा आप सब से गुजारिश है, कि आप अपने बच्चों को एक अच्छे भविष्य के लिए तैयार करें ना कि ब्लैक होल (कृष्ण विवर) जैसी कठिन से कठिन रास्ते पर मत भेजिए।
- आप सभी को चाहिए कि बच्चों को खुशियों से भरा बचपन दे हर दिन उनके लिए कुछ नया करें । आप उनके लिए कुछ ऑर्गेनाइज कर सकते हैं कुछ नहीं चीजों को मिक्सअप कर आप उनके माइंड को सेट कर सकते हैं, या यूं कह लें कि उनको माइंडेड गेम माइंडेड वर्क करा कर उनकी सोच को डेवलप (develop) कर सकते हैं ।
- आप उनको बताइए उनके अंदर क्या गुण हैं, वह किस चीज को सबसे ज्यादा मन लगाकर कर सकते आप उन्हें बताइए कि आप बहुत कुछ कर सकते हो आप उनकी अंदर के टैलेंट को देखिए और उन्हीं को उसी दिशा में कार्यरत करने के लिए कोशिश करिए आपको भी पता है और हमें भी पता है कि बच्चों का दिमाग बहुत छोटा होता है ,पर उनकी सोच बहुत गहरी होती है हम जो कुछ भी बचपन में सीखते हैं उस सीखे हुए चीजों की छाप हमारे मस्तिष्क पर हमेशा के लिए बैठ जाता है।
- आप एक उदाहरण देख सकते हैं अगर बच्चों को (व्यंजन) सिखाया जाए तो बच्चे बहुत आसानी से सीख लेते हैं और वह व्यंजन जो सीखे समझे रहते हैं वह चीजें उनको बड़े होने तक याद रहती है तो इन सब से आप खुद ही समझ सकते हैं कि बच्चे का जो दिमाग होता है। वह गहरा होता है उसमें हम जो डालेंगे आजीवन उनके दिमाग में फिट हो जाता है तो क्यों ना हम उन्हें अच्छी से अच्छी चीजें दिखाएं उनकी जीवन में खुशियां प्यार इतना भर दी कि अगर हम कुछ कहें तो उस कड़वाहट को वह मन तक ना ले जाए उन्हें हर गम से दूर रखे ताकी उनके भविष्य को सुनहरा बनाइए इसे आगे चलकर वह आपकी बातें सुनेनगे आप जो कह रहे हैं उनके भले के लिए उनको वह बातें बुरा ना लगे आप उनको इस तरीके से समझाइए की उनके जीवन को आप सुदृढ़ बनाए आज के इस दौर में जो चल रहा है ,यह जो बनता जा रहा है कह लीजिए हम किस बारे में बात कह रहे हैं इंटरनेट सोशल साइट्स सब के साइड इफेक्ट से बच्चों को बचा लीजिए क्योंकि इंटरनेट जो जाल है बहुत भयंकर जाल है उसमें जो फसता है ना कोई बाहर नहीं निकल सकता चाहे वह बड़े ही क्यों ना हो एक तरफ देखा जाए तो एक सिक्के के दो पहलू होता है एक अच्छा एक बुरा तो उसी तरह इंटरनेट भी है एक अच्छा भी है और एक बुरा भी है फर्क बस इतना है कि आप किस सेंस में इसे यूज कर रहे हैं अगर अच्छा सेंस में यूज कर रहे हैं तो वह हमें अच्छा परिणाम देगा अगर गलत सेंस में यूज कर रहे हैं तो वह गलत परिणाम देगा यह लॉक डाउन की वजह से जो दौर चल रहा है जो कार्य लोगों को करना है सब ऑनलाइन सेट हो गया है चाहे वह पढ़ाई हो चाहे बड़े लोगों का कार्य हो हम देखते हैं कि सब कुछ ऑनलाइन के माध्यम से हो रहा है बच्चे अगर क्लास कर रहे हैं तो स्मार्टफोन से अब आप खुद सोचिए कि जो बच्चे चालाक या बुद्धिमान किस्म के हैं वह क्लास के साथ-साथ अपना साइड वीडियो भी देख रहे हैं आप हर वक्त उनके साथ मौजूद नहीं है जिससे उनको सही या गलत बता पाए वह अपने आपको फोन के प्रति समर्पित कर चुके हैं परंतु ध्यान रहे इन सब बातों का ध्यान हम बड़ों को ही रखना है हमें बच्चों के बचपन को बचाना है उनकी खुशियों को बचाना है उनको सही रास्ते पर ले जाना है आप सभी से निवेदन है कि इस पहल को आगे भी एक पहल के रूप में स्वीकार कर लोगों तक पहुंचाएं ।