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मंत्र चिकित्सा

वैदिक चिकित्सा का सामान्य अध्ययन
परिचय:

मंत्र चिकित्सा वस्तुतः ध्वनि तरंग चिकित्सा है। क्योंकि मंत्र कैसी विद्या है जिसे हम अपने अंतर्मन व शारीरिक समस्या को दूर करता है मंत्र ब्रह्मांड से मिलकर हमारे शारीरिक चेतना को शुद्धीकरण करता है |
मंत्र चिकित्सा के दौरान हमारा शारीरिक व मानसिक चेतना सही रहता है क्योंकि मंत्र चिकित्सा एक ध्वनि है एक तरंग है जो हमारे शरीर और आत्मा से मिलकर ब्रह्मांड की शक्तियों में मिलाता है उसके बाद हमारा शरीर आत्मा अच्छी शक्ति को अपने अंदर अवशोषित कर नई ऊर्जा प्रदान करता है साथ ही साथ में विभिन्न जटिल रोगों से दूर रखता है और हमें सकारात्मक सोच देता है |
मंत्र चिकित्सा है क्या हमें नहीं पता अक्सर आम आदमी को यह नहीं पता कि मंत्र क्या है सब यही सोचते हैं कि मंत्र वह है जो ईश्वर को प्रसन्न करने तथा उनकी अराधना में हम जो मंत्र का जाप करते हैं वही मंत्र है कुछ हद तक यह भी सत्य है कि मंत्र यही है हम मंत्र ईश्वर के लिए ही जप करते हैं परंतु मंत्र में इतनी ताकत है है कि अगर हम इसको विधि पूर्वक हमारे वेदों में दी हुई नियम के अनुसार तथा हमारे शास्त्रों में कही हुई कथन के अनुसार अगर हम उस हिसाब से मंत्र का जाप करें नियम और निष्ठा से उस मंत्र को उच्चारित करें तो हम मंत्र के द्वारा रोगों को ठीक करने तथा मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य की कामना कर सकते हैं |

कई जगह प्रमाण मिलता है कि मंत्र ऐसे कई मंत्र है जिनको हम जप करने से व्यक्तिगत सुधार तथा जीवन व मृत्यु दर पर खड़ा व्यक्ति भी जीवन जीने की स्थिति में आ पहुंचता है|
हम मंत्र की शक्ति को आंक नहीं सकते हम मंत्र को गलत नहीं ठहरा सकते क्योंकि मंत्र ईश्वर द्वारा निर्धारित एक ऐसी सूत्रधार है जिसका खंडन करना या उसका गलत तरह से उपयोग में लाना हमारे लिए दुगना हानिकारक हो सकता है मंत्र चिकित्सा की यही खासियत है कि जो नियम निष्ठा जिस तरीके से दिया गया है उसी तरीके से करना अनिवार्य हो जाता है अगर हम इस चीज का विपरित अध्ययन करते हैं तो व्यक्ति के जीवन पर इसका असर बुरा पड़ता है वह उसके लिए लाभकारी ना होकर हानिकारक हो जाता है मंत्रों के वाचन से जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह तरंगों के रूप में वायुमंडल में जाती है और सूर्य की सूक्ष्म शक्तियों के आत्मसात करके साधक के शरीर में प्रविष्ट होती है इन अदृश्य सूक्ष्म शक्तियों के प्रभाव से न केवल शरीर के अपितु मस्तिष्क के रोग भी दूर होते हैं इन सब से छुटकारा पाने के लिए वेद में समस्त मानव कल्याण हेतु मार्ग दिखाया गया है मानव जाति को अज्ञान, निराशा, अनाचार ,और आधि- , व्याधि से मुक्त करके जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं संसार में पाए जाने वाले रोगों का निवारण वेद में है वेद में प्राकृतिक ,सांसारीक, आत्मसात चिकित्सा पद्धति पाई जाती है और मुख्यता प्राकृतिक चिकित्सा का वर्णन वेद में अत्यधिक मात्रा में है |
प्राकृतिक चिकित्सा के क्रम में मंत्र व ध्वनि चिकित्सा का वर्णन वेद में है हालांकि मंत्र चिकित्सा संबंधित बहुत अधिक मंत्र वेदों में प्राप्त नहीं है यह चिकित्सा वस्तुतः व्यवहार की चिकित्सा है कर्मकांड की चिकित्सा है अतः इस चिकित्सा के द्वारा रोगों का निवारण किसी वैद्य द्वारा ना हो कर प्रायः कर्मकांडी ब्राह्मण द्वारा किया जाता है |
प्राय: हमेशा हमारे व्यवहारिक जीवन तथा आसपास ऐसे घटना घटित होती है जिसे कभी हम सोच भी नहीं सकते कभी-कभी हमारा व्यवहारिक जीवन में उथल-पुथल हो जाता है जिसके कारण हमारा जीवन दुखी रोगी व्याधि तथा ऊपरी फेर से हमारा जीवन कष्टदायी ,दुखदाई बन जाता है। जिसका उपाय डॉक्टर के पास नहीं होती हमारा आत्मा विचलित हो जाता है जो कभी कुछ समझ नहीं आता साथ-साथ हम बहुत दुख के ऐसे अंधेरे में चले जाते हैं जहां उम्मीद की एक किरण भी दिखाई नहीं पड़ती वह हम उस ईश्वर उस ब्रह्मांड के समस्त शक्तियों की आराधना हम मंत्रों के द्वारा करते हैं |
जब हम मंत्र का उच्चारण आत्मसात होकर शारीरिक व मानसिक क्षमता की तुलना कर जब ब्रह्मांड में उपस्थित शक्ति से हमारे उच्चारण मंत्र की शक्ति मिलती है तो हमें एक नई ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान होती है जिससे हमारा मन हल्का व कष्टों से सहन कर पाता है इसी वजह से हम मंत्र चिकित्सा कहते हैं |
जरूरी नहीं कि मंत्र चिकित्सा सिर्फ और सिर्फ रोगो व्याधियों को दूर करने के लिए है बल्कि मंत्र चिकित्सा रोग वह व्याधि के साथ-साथ आत्मा सुख, शारीरिक सुख, परमात्मा सुख, परमसुख ज्ञान सुख शक्ति का अनुभव भी प्रदान करता है जिसकी वजह से हमारा झुकाव आध्यात्मिक व मंत्र परमात्मा ओर हो जाता है
इतने तरह के लाभ व चिकित्सा पद्धति हमें मंत्र चिकित्सा में ही मिलता है |अक्सर प्रायस सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में था किंतु मंत्र चिकित्सा द्वारा उसकी लिए 1 लाख 51 हजार महामृत्युंजय मंत्र का जाप और मन राशन व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ लेकर मंत्र जाप की पूर्णाहुति देने स्वयं आ जाता है या मंत्र शक्ति का ध्वनि शक्ति का ही प्रभाव है कि ध्वनि का उच्चारण तो रोगी से कहीं दूर अयंत्र हो रहा था लेकिनउस ध्वनि का सकारात्मक प्रभाव रोगी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ रहा था इसी वजह से रोगी व्यक्ति स्वयं ठीक होकर मंत्र का पूरा आहुति देने उस स्थान पर पहुंचता है जिस स्थान पर उस व्यक्ति के लिए हो रहे जाप उसके लिए हो रहे थे |

इन शक्तियों के प्रभाव से न केवल शरीर के अपितु मस्तिष्क के रोग भी दूर होते हैं संगीत गायन अथवा वादन में भी यही ध्वनि शक्ति कार्य करती है आधुनिक वैज्ञानिकों ने संगीत की सहायता से मनुष्य एवं पशुओं के अनेकों रोगों का सफलतम इलाज करके उन्हें स्वस्थ किया गया है |
रोगों को दूर करने के लिए वैदिक चिकित्सा में औषधि सूर्य ,जल,अग्नि, आदि के महत्व को स्वीकार किया गया है और साथी रोगाणु के नाश के लिए विधि पूर्वक एवं सस्वर मंत्र पाठ भी वेद में आवश्यक बताया गया है इसीलिए आधुनिक भाषा में वैदिक चिकित्सा प्रणाली को अभिचारिक धार्मिक औषधीय चिकित्सा प्रणाली अर्थात मैजिको रिलीजियस मेडिकल ट्रीटमेंट सिस्टम(Magical Religious Medical Treatment System) कहते हैं |
वेदों में अनेकों स्थलों पर मनुष्य की पीड़ा को हरने वाले दीर्घ जीवन परख तथा स्वास्थ्य जीवन की प्रार्थना वाले अनेकों मंत्र उपलब्ध है। जिनका उद्देश्य मानव को त्रिविध दुखों से मुक्ति दिलाना है वेदों में अनेकों स्थान पर मंत्रों को औषधीय मानते हुए उनका रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया गया है |

मंत्र चुकी तेजोमय शक्ति रखते हैं अतः वे रोग का नाश करते हैं तथा साथ ही ऊर्जा शक्ति एवं आध्यात्मिक चेतना का विस्तार भी करते हैं |
मंत्रों के सस्वर पाठ से विशेष प्रकार के सूक्ष्म ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो चारों ओर की वातावरण को शुद्ध करती है साथ ही उच्चारण करता के शरीरस्थ दोषों का नाश भी करती है मंत्रों का सस्वर पाठ वस्तुतः संगीत एवं शब्द शक्ति का अद्भुत समन्वय है जो कि वक्ता एवं श्रोता दोनों के लिए अत्यंत लाभदायक है मंत्रों का गान अथवा सस्वर पाठ श्रवणकर्ता के हृदय में नवीन उर्जा संचार करते हैं फलत: मनुष्य को कई प्रकार के मानसिक रोगों ह्रदय रोगों एवं स्नायु रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है मंत्र शक्ति से दुर्विचारों का भी नाश होता है और मनुष्य का मन सात्विक बन जाता |
“मंत्र” का शाब्दिक अर्थ सोचने का एक उपकरण है। एक मंत्र पवित्र वेदों में सुझाए गए शब्दों का एक समूह है, जिनमें से अधिकांश दो लाइन स्लोका के लिखित पैटर्न का पालन करते हैं , हालांकि वे अक्सर एकल लाइन या ” ओम” जैसे एकल शब्द रूप में पाए जाते हैं जिसे प्रणव कहा जाता है । “ओम” हमें अपने व्यक्तिगत स्व की प्राप्ति देता है और बाधाओं को हटाने में मदद करता है। इस कारण से, “ ओम “सबसे मौलिक और शक्तिशाली मंत्र माना जाता है, और इस प्रकार सभी प्रार्थनाओं के लिए उपसर्ग और प्रत्यय है। शब्द ” ओएम” तीन ध्वनियों से बना है AUM (संस्कृत में, स्वर A और U, O बनने के लिए गठबंधन करते हैं)। ” ओम ” ( प्रणव ) का निरंतर उच्चारण सभी रोगों को दूर करने और स्वास्थ्य को बनाए रखने में सक्षम है। पूर्व पापों और बुराइयों के विनाश के लिए प्रणव को तीन प्लूटा-मातृ (या लंबे समय तक अंतःकरण ) के साथ दोहराना चाहिए ।
“मंत्र” शरीर के प्राकृतिक उपचार तंत्र को जागृत करता है; मंत्रों का सही और व्यवस्थित जाप एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करता है जहाँ अंतिम उपयोगकर्ता को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है जो शरीर को अपनी प्राकृतिक स्थिति में वापस आने की अनुमति देता है। ये मंत्र ऊर्जा आधारित ध्वनियां हैं और इसलिए वैदिक मंत्र उपचार शारीरिक और मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए एक बढ़िया उपाय है। जब एक मंत्र को बार-बार उच्चारण किया जाता है, तो यह एक विशेष आवृत्ति पर धुन करता है और यह आवृत्ति ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ मानव आत्मा का एक संपर्क स्थापित करती है और इसे मानव शरीर और उसके आस-पास एक सकारात्मक और उपचार वातावरण प्रदान करती है जो ऊर्जा को संतुलित करती है और बढ़ती भी है। एक निश्चित प्रकार की ऊर्जाओं का स्तर, जो कुछ क्रियाओं और घटनाओं को बढ़ावा देता है।

मंत्र शक्ति से लदे होते हैं और अपनी अद्वितीय ध्वनियों और स्पंदनों द्वारा आत्मा को चेतना के गहरे स्तरों में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं। मंत्रों के पवित्र जाप से रोगों को ठीक करने, बुराइयों को दूर करने, आनंदित अवस्था प्राप्त करने और अंत में मोक्ष ( मोक्ष )प्राप्त करने में मदद मिलती है- मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य।
सनातन संस्कृति के धर्मशास्त्रों में वैदिक मंत्रों का काफी गुणगान किया गया है। मंत्रों को देववाणी बताकर उनके जाप से जीवन के उत्थान की बात कही गई है। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘मनः तारयति इति मंत्रः‘ अर्थात मंत्रों में वह शक्ति होती है कि वो मानव को तार देते हैं। हर देवी देवता के अपने मंत्र होते हैं और उनके स्मरण मात्र से मानव के उन्नति और उसकी सफलता के द्वार खुलते हैं।
वैदिक शास्त्रों नें मंत्रों को मुख्य रूप से सोलह भागों में विभक्त किया गया है। इस तरह कहा जा सकता है कि मंत्रों का सोलह तरीकों से पारायण और अधिष्ठापन किया जाता है। वैसे मंत्रों को मुख्यत: तीन प्रकार से श्रेणीबद्ध किया गया है। जो वैदिक, तांत्रिक और शाबर मंत्रों में विभक्त है।

वैदिक मंत्र

मंत्र की यदि धार्मिक कर्मकांड में बात की जाए तो सबसे पहले वैदिक मंत्रों की बात होती है। मान्यता है कि वैदिक मंत्रों को सिद्ध करने में काफी समय लगता है। लोकिन वैदिक मंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यदि उनको एक बार सिद्ध कर लिया जाए तो वे फिर कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। मानव जीवन में उनका प्रभाव सदैव बना रहता है। जिस किसी भी मनुष्य ने अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए वैदिक मंत्रों को सिद्ध कर लिया है, तो उसकी जिंदगी में उस मंत्र का प्रभाव हमेशा बना रहता है।

तांत्रिक मंत्र

वैदिक मंत्रों को सिद्ध करने में जहां कड़ी मेहनत और ध्यान की जरूरत होती है वहीं तांत्रिक मंत्र वैदिक मंत्र की अपेक्षा जल्दी सिद्ध हो जाते हैं और अपना फल भी मानव को जल्दी दे देते हैं। लेकिन तांत्रिक मंत्र जिल्दी सिद्ध होते हैं उतनी ही जल्दी उनका प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। यानी जितनी जल्दी तांत्रिक मंत्र अपना असर दिखाते हैं उनकी शक्ति भी उतनी जल्दी क्षीण हो जाती है। तांत्रिक मंत्रों का प्रभाव वैदिक मंत्रों की अपेक्षा कम सम तक बना रहता है।

शाबर मंत्र

वैदिक और तांत्रिक दोनों मंत्रों से शाबर मंत्र अलग होते हैं। शाबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध हो जाते है। यानी वह जातक को अपना प्रभाव जल्द देते हैं। ये मंत्र शीघ्र सिद्ध होते हैं इसलिए इनका प्रभाव भी ज्यादा देर तक नहीं रहता है।