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बच्चों को इंटरनेट से कैसे बाहर निकालें

बच्चों को इंटरनेट से कैसे बाहर निकालें

यह सोचने वाला प्रश्न है कि बच्चों को इंटरनेट से कैसे बचाएं क्या इंटरनेट बच्चों के लिए खतरा बन रहा है या वरदान बनता जा रहा है बच्चे एक गीली मिट्टी के समान हैं, उन्हें संभाल कर रखना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि आज का समय ही ऐसा चल रहा है और आज का दौर ही ऐसा चल रहा है कि इंटरनेट के बिना या सोशल मीडिया के बिना हमारा कार्य धीमी गति से चलता है, क्योंकि जो दिख रहा है वही हो रहा है पर क्या आपको पता है ।जो दिखता है वह कितना गहरा अंधकार की तरह रहता है ।

बच्चे हो या बूढ़े हो या जवान हो ,इंटरनेट सबकी जिंदगी में एक बड़ा साथी के रूप में सबके साथ  है ,और सबके लिए जरूरत बनता जा रहा है ।हम ना चाहते हुए इंटरनेट के यूजर बनते जा रहे हैं हमारा सारा कार्य भार स्कूल के कोर्स (course) इंटरनेट के माध्यम से चलते हैं। अगर हम इन से बच्चों को दूर भी रखना चाहे ,तो हम नहीं रख पाते है, हम सोचते रह जाते हैं कि बच्चा बहुत कम से कम फोन को प्रयोग में लाएं परंतु आज का यह दौर जो कोरोनावायरस और लॉकडाउन के चलते हुआ है की  हमारे जीवन का यह अहम हिस्सा हो गया है लॉक डाउन की वजह से स्कूल कॉलेज ऑफिस सब बंद हो गए थे मानो कि हमारी दुनिया रुक सी गई थी। इसमें हम करते भी तो क्या करतेे जहां भागदौड़ की रोजमर्रा की जिंदगी ठप हो गई थी ।सुनसान रास्ते भी अनजान रास्ते पर खड़ा हो गया था ,तो क्या करते हम लोग लगगए इंटरनेट की दुनिया से खुद को रोक लिया ,उससे कितनों ने इसी के सहारे अपने हुनर को निखारा तो कितनों ने खुद को इसी में समा लिया चॉइस(choice) आपको करना है कि आपको किस रास्ते पर जाना है कुछ चीज हाथ में लेकर ऊपर उठना है, कि कुछ चीज हाथ में लेकर नीचे बैठ जाना है ।यह निर्णय आपका स्वयं होगा मैं उन माता-पिता या बड़ों से निवेदन करूंगी जिनके बच्चे फोन यूज(Use) करते हैं ,तो सिर्फ और सिर्फ उनके हुनर को निखारीए ना कि उनकी भविष्य को अंधेरे में डालिए ।

हम चाह कर भी बच्चों को इस बवंडर से नहीं निकाल पाते चाहते बहुत कुछ है पर कर नहीं पाते क्योंकि वह पहल करने वाला जो कदम होता है ना उठ नहीं पाता है मुश्किल हालातों में हमने बहुत कुछ देखा बहुत कुछ किया भी पर बस बात आती है बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए कि हम बच्चों को कैसे सुरक्षित रखें ।आप सभी इस बात से अनजान नहीं हैं कि इंटरनेट अच्छी भी है और बुरी भी उस पर जो ऐड(Advertisement) आते हैं ,कुछ अच्छे आते हैं तो कुछ बुरे ऐड आते हैं, चाहे बड़े का माइंड क्यों ना हो या छोटे का माइंड क्यों ना फिसल ही जाता  है ।

एक गणना के तौर पर मैं आपसे साझा कर रही हूं कि जब ज्यादा फोन चलाते हैं या किसी भी चीज को हम ज्यादा देर तक अपने साथ लगा बैठते हैं , तो उस टाइम (Time) हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है ।हमारे अंदर आलस आ जाती हैं हमारे अंदर एक ऐसा बीमारी घेर लेता है, कि हम ना किसी से बात करते हैं ना किसी से मिलना जुलना पसंद करते है, सिर्फ अपना रूम का एक कोना पकड़कर हम बैठे रहते हैं ,क्या करते हैं ? फोन चलाते हैं यकीन मानिए यह अच्छा नहीं होता है। हम सब कुछ भूल जाते हैं अपनी जिंदगी से जुड़े जो अहम हिस्से होते है।वह सब भूल जाते हैं हमें कुछ समझ में नहीं आता क्या करें ? दिमाग में तो बहुत कुछ आता है कि मेरा यह सब कुछ छूट रहा है मेरी पढ़ाई छूट रही है मेरा वर्क छूट रहा है ,सोचते ही रह जाते हैं और इस पर अमल नहीं कर पाते, नहीं अब बस हमें इन सब से बाहर निकलना है ,हमें अपने बच्चों को निकालना है इंटरनेट बचाना है।

कुछ टिप्स

  • बच्चों का जितना कार्य ऑनलाइन है ,आप  उनसे कराइए उसके बाद उनको एक स्ट्रीट निर्देश देकर उनसे ऑनलाइन या फोन को दूर कर लीजिए उन लोगों से मिलाई जो अच्छे लोग हैं माता-पिता चाहे तो कुछ भी कर सकते है, उन्हीं लोगों से मिलवाइए विभिन्न-विभिन्न प्रकार के प्राणी होते हैं। मैं कहूंगी कि उनसे उनको रूबरू कराइए और उन्हें पार्क ले जाइए उन्हें बाहर की चीजों को दिखाइए हर चीजों में तार्किक बनाइए अगर बच्चा सिग्नल देख रहा है तो उस सिग्नल देखकर वह कुछ सोचे समझे अगर बच्चा रास्ते में चल रहा है ,भीड़ देख रहा है, जाम देख रहा है उससे भी उसको एक लॉजिकल थिंकिंग प्रोवाइड कराइए आप बहुत ढेर सारी एक्टिविटीज में भाग लीजिए तो यकीन मानिए बच्चा खुद-ब-खुद अच्छे रास्ते पर चलने लगेगा ।
  • सभी लोग इंटरनेट के साथ ऐसे जुड़े कि मानो इनकी दुनिया इतनी सी है क्यों जुड़े कभी आपके मन में प्रश्न उठा बिल्कुल उठना चाहिए कोविड-19 और लॉक डाउन की वजह से सब कुछ बंद हो गया था ।स्कूल कॉलेज ऑफिस संस्थान बड़े-बड़े प्लेग्राउंड मस्ती के सारे संसाधन बंद पड़ गए थे ,और वह सारे संसाधन कहां मिली इसलिए बच्चों का और बड़ों का झुकाव फोन से हो गया। 
  • याद है वह दिन कोविड-19 के पहले भी बिते साल कैसे दुनिया का अलग तरीके से जीती थी । स्कूल खुले थे पार्क खुले थे और बच्चों को सीखने के सभी रास्ते खुले थे तभी भी इंटरनेट का प्रयोग होता था, परंतु एक कम अवधि तक क्योंकि उनके वर्क उनके कार्य के प्रोजेक्ट इन सब में आधा समय निकाल लेता था और इन सब कार्यों को पूरा करते समय वह थक जाते तो मानो कि उनका यूजर कम हो जाता पर बंद हुए वह सारे जिंदगी के लम्हे उन्हें फिर से इंटरनेट की दुनिया में ढकेलता है और बच्चे उसमें जाकर गिर जाते हैं ।यही सब बातों का प्रभाव बच्चों के ऊपर हुआ आप खुद ही देख लीजिए कि बच्चों के अंदर पहले से कितना परिवर्तन देखने को मिलता है मैं आपके साथ आंकड़ा प्रस्तुत करना चाहती हूं। 
  • एक उदाहरण लेते हैं 2001 में जिन बच्चों का जन्म हुआ था ,उनके जीवन जीने का तरीका और जो बच्चों का जन्म 2015 से 16 के बीच में हुआ था उनकी जीवन जीने का तरीका से आप इतना से ही अंतर लगा सकते हैं, कि 2001 के समय जो बच्चों का जन्म हुआ था वह इतना सोशल मीडिया के आदी नहीं थे। अपने आप को निजी कार्यों में समर्पित करते थे ,परंतु 2015 से 16 के बीच के जो बच्चे हैं वह खुद को समर्पित कहां करते हैं इंटरनेट पर 2001 वाले जो बच्चे हैं उनका शारीरिक मानसिक या कह लीजिए कि आप आई क्यू लेवल(IQ Level) , ज्यादा होता था अपेक्षा इस समय उनके बच्चों से उस समय के बच्चे मिलनसार है, उनके अंदर संस्कार थे, वह बाहरी दुनिया में ज्यादा समय व्यतीत करते थे ,पर जो आज के जनरेशन के बच्चे हैं ,वह ना तो संस्कारी हैं ना ही तो मिलनसार हैं और ना ही अपना समय ज्यादा बाहर व्यतीत करते हैं उनके अंदर झिझक है वह कंफर्ट जोन(comfort zone) के बच्चे हैं।
  • आधुनिक समय के पीढ़ी (generation) के जो बच्चे हैं उनमें यह सब गुण तो नाममात्र है और खोते जा रहे हैं वह भूलते जा रहे हैं कि उन्हें कुछ आता नहीं आप अपने घर के ही बच्चों को देखते होंगे खुद ही अंतर समझ में आता है इंटरनेट की सुविधा और स्मार्टफोन(smartphone) में खुद को डूबा चुके हैं।आप हम उनकी जीवनशैली को देखते हैं।बच्चे पढ़ाई से फोन करते हैं उनका स्कूल बुक वर्क सब ऑनलाइन के माध्यम से होता है।अगर बच्चे खाना खाते हैं तो उनका फोकस फोन के ऊपर रहता है।अगर वह खाली समय मे भी है तो फोन पर गेम वह अजीब वीडियो देखते रहते हैं।

उदाहरण के लिए देखते हैं

  • कहां जाता है “बूंद बूंद से घड़ा भरता है” यह बात सच भी है आप सोचिए कि जब बूंद बूंद से घड़ा भर सकता है तो लोगों की मिलाप से बाहरी दुनिया को देखने से बच्चों में कितना परिवर्तन आ सकता है आप इसके ताकत का अंदाजा आप लगा भी नहीं सकते है।यही पता चलता है कि बच्चों को बाहरी दुनिया से जुड़े रखना बहुत जरूरी है यह मत सोचना कि फोन से ना-ना  प्रकार कि चिजे मिल सकती है।बिल्कुल नहीं सारी दुनिया का मतलब प्रत्यक्ष रूप से लोगों का आदान-प्रदान होना।
  • कभी-कभी आप देखते होंगे कि बच्चे ऑनलाइन कक्षा करते समय क्लास को स्कीप कर वीडियो गेम नॉर्मल गेम या ऑनलाइन वीडियो देखने लगते हैं यह उनकी लत है जो आने वाले कुछ ही समय में घातक साबित हो सकता है इसी को लत कहते हैं ।
  • फोन भी ना चलाएं वीडियो बिना देखे वह 24 घंटा चैन से रह नहीं सकते उनको सोते उठते खाते पीते पढ़ते लिखते हर समय उनको स्मार्टफोन चाहिए ही चाहिए इसकी वजह से वह सही मात्रा में सही ढंग से खाना भी नहीं खा पाते, क्योंकि उनका पूरा ध्यान और शरीर का नियंत्रण उनके फोन पर रहता है इसकी वजह से उनका विकास रुक जाता है और यह एक बड़ी समस्या है। कम भोजन करना ध्यान देकर भोजन ना करने कि वजह से बीमारियों का तांता लग जाता है।
  • हम देखते हैं कि बच्चे दिन भर फोन देखने के चलते चिड़चिड़ापन(irritability)उदासी,आलसी किसी से बात ना करना बातों को न समझना बोलने की समस्या उत्पन्न हो जाती है पढ़ाई में मन नहीं लगता ज्यादा कुछ सोच नहीं पाते हम यही लक्षण बच्चो के अंदर देखते हैं ।आप जानते भी हैं ,यह समस्सया बको आम समस्या लगती है ,पर मेरी नजर में नहीं ।आपका बच्चा बोल नहीं पाता है सही ढंग से शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाता है ,तो सोचिए इस समस्या को लेकर आप कहां जाएंगे? यह समस्या को लेकर आप डॉक्टर के पास जाएंगे और डॉक्टर बड़ा सा बिल तैयार करेगा। और आप इससे एक ऐसी बीमारी समझ कर उसी दवा देते रहेंगे और भी समस्या उत्पन्न हो सकती हैं एक जंजीर की तरह होता जाएगा आप सोच भी नहीं सकती यह समस्या हमें किस कदर खोखला बना देगा।
  • इसी सब समस्या को लेकर हम आप सभी से बात करने की इच्छा  प्रकट किये है आशा करती हूं कि आपको सहायता मिली होगी और हमाारी बातें भी समझ आई होगी धन्यवाद ।